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होली और फगुआ गीत…

(१)फागुन मा बलमा धरयं दोकान

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फागुन मा बलमा धरयं दोकान फागुन मा 


वहि रे दोकनियाँ म रंग बिकत है 

लाल औ पीला मिलय गुलाल फागुन मा।


वहि रे दोकनियाँ म चुनरी बिकत है

रंगबिरंगी चटख गोटेदार फागुन मा।


वहि रे दोकनियाँ मिठइया मिलत है

लड्डू औ छेना, जलेबी रसेदार फागुन मा॥


वहि रे दोकनियाँ सिंगार मिलत है

सेंदुर औ बिंदिया कजर चोटी बार फागुन मा।


सखियन क लय हम जइबय दोकनियाँ 

अपना तौ लेब उनका देबय उधार फागुन मा।

🎨🥁🎨🥁🎨🥁🎨🥁🎨🥁🎨

(२) ऐसी घिरी हैं घटाएँ

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ऐसी घिरीं हैं घटाएँ , मोरा जिया भरमाएँ

मोरी चुनरी उड़ाएँ.. ऐसी घिरीं हैं…


घिरीं घटाएँ रंग लेके आएँ.. लाल लाल लेके आएँ, पीली पीली ले के आएँ… ऐसी घिरीं हैं…


घिरी घटाएँ रंग बरसाएँ.. हरा हरा बरसाएँ.. नीला नीला बरसाएँ…ऐसी घिरीं हैं…


घिरी घटाएँ मन हर्षाएँ… मेरे केश उड़े जाएँ… मेरे पाँव नाच जाएँ… ऐसी घिरी हैं…


घिरी घटाएँ जीना सिखाएँ... बरखा ले आएँ… 

मेरे खेत भर जाएँ… ऐसी घिरी हैं…।

🎨🥁🎨🥁🎨🥁🎨🥁🎨🥁🎨

**जिज्ञासा सिंह**

3 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (०६-०४-२०२३) को 'बरकत'(चर्चा अंक-४६५३) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. बहुत बहुत आभार अनीता जी।
    आपकी उपस्थिति देख सुखद अनुभूति हुई। स्नेह बनाए रखें सखी।

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  3. दोनों गीत सरस और मधुर हैं जिज्ञासा जी ! आप के लेखन की विविधता नमनीय है ।

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