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सागर का दीवान कौन है ?

 

साधो ! मन ना कहिए जाई

तन आभूषण देखि लोभइहैं

मन देइहैं बिसराई 


कित डूबे, कित बहि उतराने

नदियाकौन से सागर छाने

केहि नौका पे बैठि चले पिय

किनकी गही कलाई 


काहे पे भरमेकब बेल्हमाने

देखे कितने ठौर ठिकाने

चढ़ि आसन नौ मन इतराने

उतरत पीर बढ़ाई 


ये जीवन सागर सम गहरा

घाट-घाट पर उनका पहरा

सागर का दीवान कौन है

देखी का परछाई ?


अब जानी मन के भरमन को

साँच-झूठबिचरत जीवन को

एक-एक पग क़ीमत डग की

देन परत उतराई 


**जिज्ञासा सिंह**