बारे लला, गोभवारे लला ॥
भोजन करौ समधी के बारे लला ॥
छप्पन बिंजन रुचि रुचि बनायों
रसही जलेबी इमरती रचायों
खाओ तो खाओ नाहीं, समधी बोलाई
तोरी अम्मा बोलाओं बारे लला ।
भोजन करौ समधी के बारे लला ॥
जयपुर कढ़ैया के चदरा मंगायों
झारि झारि तकिया सजाय बिछायों
लेटो तो लेटो नाहीं, बहिना बोलाई
तनी एसी चलावें बारे लला ।
भोजन करौ समधी के बारे लला ॥
यहि रे नगरिया दूल्हे गरमी बहुत है
गली गली ठंडा दोकान सजत है
पियो तो हम तोहे बोतल मंगाइ देइ
पैप्सी मंगाओं बारे लला ।
भोजन करौ समधी के बारे लला ॥
हमरे देस बाजारन म आयो
सादी अउर बियाहन म आयो
पैसा वसुलिहौं, ब्याज लगइहौं
जौन खर्च कराएव बारे लला ।
भोजन करौ समधी के बारे लला ॥
**जिज्ञासा सिंह**
शब्द: अर्थ
बारे लला: छोटे बच्चे
गोभवार: गर्भ के बाल वाले बच्चे
दोकान: दुकान
बिंजन: व्यंजन, भोजन
वसुलिहौं: वसूली करना
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जवाब देंहटाएंगीत मज़ेदार है लेकिन इसमें थोड़ी गालियाँ होतीं तो यह ज़्यादा चटपटा हो जाता.
जवाब देंहटाएंत्वरित टिप्पणी के लिए आपका आभार !
जवाब देंहटाएंजानती तो सब हूँ, अगर आप कहेंगे तो अगले गीत में आपको सुनने (पढ़ने😀)को मिलेंगी !
सोशल मीडिया में कोई अन्यथा न ले !
इसलिए ज़्यादा नहीं डाली
आपको मेरा सादर अभिवादन😀👏🏻
बहुत बढ़िया लोकगीत । हर विधा में माहिर हैं ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका दीदी ।
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जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(४-०६-२०२२ ) को
'आइस पाइस'(चर्चा अंक- ४४५१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत बहुत आभार आपका प्रिय अनीता जी ।
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत सुंदर, लेकिन गोपेश जी की भावनाओं को जगह मिलनी चाहिए!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय। आप सबकी भावनाओं का ख्याल जरूर रखा जाएगा ।
हटाएंबहुत सुंदर लोकगीत। अब तो लोकगीत इतिहास होते जा रहे हैं ।
जवाब देंहटाएंजी, सही कह रहे हैं आप । बहुत बहुत आभार आपका ।
जवाब देंहटाएंवाह बेहतरीन लोकगीत जिज्ञासा जी।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका अनुराधा जी ।
हटाएंवाह बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका ।
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