हरे हरे सावना ।
मोरी अम्मा में जिया मोरा लाग
हरे हरे सावना ॥
आजु सपन मैं देखी बबुल जी का घर
सब अँगन में बैठे हैं साँझ पहर
बाबा दादी बुलायें हम दौड़ी हैं आएँ
मन खोल लिखूँ हिय बात
हरे हरे सावना ॥
मेरे सपन में बचपन की सखियाँ दिखैं
मेरे गोद में गुड्डा औ गुड़िया दिखैं
मोरे गुड्डा औ गुड़िया का ब्याह रचा
मोरे द्वारे पे आई बरात
हरे हरे सावना ॥
अब काव लिखूँ यहि पाती सखी
मन हर्षित है मन होत दुखी
मोरे ससुरे म नैहर की कौन सुने
आजु जियरा है मोरा उदास
हरे हरे सावना ॥
मैं बाबुल लिखूँ या बिरन लिखूँ
यहि सवन न आए अब चैन लिखूँ
कोई मोहे बताए काव काव लिखूँ
मोरे जियरा में सौ सौ बात
हरे हरे सावना ॥
एक पाती लिखूँगी मैं आज
हरे हरे सावना ।
मोरी अम्मा में जिया मोरा लाग
हरे हरे सावना ॥
**जिज्ञासा सिंह**