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कान्हा की पैजनियाँ (लोकगीत)


मोरे कन्हैया की बाजे पैजनियाँ
झूम झूम जाएँ यशोदा जी रनियाँ

प्यारे कन्हैया का खूँटे मे बाँधि आई
बक्से म कोने छुपाई पैजनियाँ
खूँटा छुड़ाया, पैजनियाँ चुराया
पहन पहन नाचे ये संग नाचें गोपियाँ ॥

यहि रे पैजनियाँ म नन्हें नन्हें घुँघरू
सोने की लड़ी लगी, लगी कई कड़ियाँ
पहन पहन कान्हा सबहि ललचावे
माँग रहीं राधा, न देवे कन्हैया ॥

वही पैजनियाँ पे राधा जी रूठ गईं ।
कहें कान्हा अइहौं न तोहरी नगरिया
मातु जशोदा के घर चली जैहौं
माँगि लैहौं धीरे से तोरी पैजनियाँ ॥

पहिन पैजनियाँ मैं गोकुल म घुमिहौं
देखि देखि जरिहैं तुम्हारी सारी सखियाँ
तोसे कहूँ कान्हा मोहे न चिढ़ैहौ
फेंक देहौं जमुना म तोरी पैजनियाँ

** जिज्ञासा सिंह**

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