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विवाह में प्रकृति का निमंत्रण (अवधी बियाहू गीत)


मेड़े मेड़े घुमि घूमि पौध लगाँवव, पौध जे जाय हरियाय ।
उपरा से झाँकय सुरज की जोतिया, नीचे धराति गरमाय ।।

आओ न सुरजा चौक चढ़ि बैठौ, देहूँ मैं बेनिया डोलाय ।
तपन धुजा की मिटाओ मोरे सुरजा, मेह का दीजो बोलाय ।।

होत भोर मैं सुरजा मनाएंव, सांझ बदरिया डेरा डारि ।
झिनि झिनि बूंदन बरसे बदरिया, घिरि आई कारी अंधियारि ।

आधी रात घन बरसन लागे, बिजुरी कड़के बड़ी जोर ।
भोर भए मोरी भरि गई कियरिया, पनिया भरा है चारिव ओर

खेत मेड़ हरियाय गए राजा, धरती बिहंसि हरसाय ।
अंचरा पसारे रानी सुरजा निहारें, सुरजा बदर छुप जाएं ।।

**जिज्ञासा सिंह**
शब्द: अर्थ 
धराति: धरती 
लगाँवव: लगाना 
हरियाय: हरा होना 
सुरजा: सूरज
बेनिया: हाथ का पंखा
धुजा: शरीर
झिनि झिनि: छोटी छोटी

विवाह गीत..(अवधी बियाहू )



दूर देस मोरी बेटी गई हैं:२
पढ़न बड़ी रे किताब ।
सखी रे कैसे ब्याह रचाऊँ ।।

अट्ठरा बरस बेटी होन को आईं:२
बाबा ने ठाना बियाह ।
सखी रे कैसे ब्याह रचाऊँ ।।

रोय रोय बेटी ने घर भर दीन्हा: २
हम तौ पढ़न दूर जाब ।
सखी रे कैसे ब्याह रचाऊँ ।।

बाप न भेजा औ बाबा न भेजा: २
हम करिके भेजा बिसवास ।
सखी रे कैसे ब्याह रचाऊँ ।।

सबही के बेटी बियहि गईं ससुरे: २
हमरी पढन दूरदेस ।
सखी रे कैसे ब्याह रचाऊँ ।।

कोई मारे बोली तौ कोई ठिठोली: २
करौ जल्दी बेटी बियाह ।
सखी रे कैसे ब्याह रचाऊँ ।।

हम कही बेटी जौ पढ़ि कुछ बनिहैं: २
मिलि जैहैं सुघर दमाद ।
सखी रे फिर ब्याह रचाऊँ ।।

**जिज्ञासा सिंह**
शब्द: अर्थ 
बड़ी किताब: उच्च शिक्षा 
बिसवास: विश्वास 
ठिठोली: मज़ाक़ 
ससुरे: ससुराल 
सुघर: अच्छा, पढ़ा लिखा कमाऊ 

महावर, नाखुर गीत (अवधी लोकगीत)

रगरि रगरि धोवे गोड़ कहारिन,
अरे नाउन आई बोलाइ, रमन जी कै आजु है नाखुर ।।

दूर देस सखि रंग मंगायंव, 
मेहंदी मंगायंव मारवाड़, रमन जी कै आजु है नाखुर ।।

केहू कहे चिरई, तव केहू कहे सुग्गा,
केहू कहे चंदा बनाओ, रमन जी कै आजु है नाखुर ।।

सोनेन की नाऊ लाए हैं नहन्नी,
चांदी सींक सलाई, रमन जी कै आजु है नाखुर ।।

रचि रचि रंग भरे है नउनिया,
मेहंदी लगाई मनुहारि, रमन जी कै आजु है नाखुर ।।

दसरथ दीन्हें हैं अनधन सोनवा, 
कौसल्या मोतियन हार, रमन जी कै आजु है नाखुर ।।

झूमि झूमि नाऊ लेहि बलैया,
नाउन नाचें झलकारि, रमन जी कै आजु है नाखुर ।।

**जिज्ञासा सिंह**
शब्द    अर्थ
रमन जी : भगवान राम
नाखुर :  नाखून कटना
गोड़  :   पैर
चिरई : चिड़िया
सुग्गा : तोता
नहन्नी : नाखून काटने का औजार
बलैया : दुआ, आशीर्वाद
झलकारि : झूम झूम, मगन हो

मेला में पत्नी का बिछुड़ना (लोकगीत)


मोरी धनियाँ मेला म हेराय गईं ।

अगवा से हम चलैं पीछे मोरी धनियाँ,
न जाने कैसे डगरिया भुलाय गईं ।

पहली बार धना घर से हैं निकरी,
भीर देखते बहुत घबराय गईं ।

नदिया नहरिया धनै बहु भावे
बीच गंगा म डुबकी लगाय गईं ।

लड्डन हलवैया बनावे मिठैया
रसही जलेबी देखि ललचाय गईं ।

खस्ता बसाता उन्हें बहु भावे,
एक दर्जन गपागप खाय गईं ।

सुरमा दुकनियाँ क रहि रहि ताकें,
दाम सुनते बहुत खिसियाय गईं ।

लड़िकन खिलौना सबहि कुछ बेसहैं,
लै के पिपिहिरी वे पीं पीं बजाय गईं ।l

**जिज्ञासा सिंह**
शब्द: अर्थ
धना, धनियाँ: पत्नी
हेराय: खोना, बिछुड़ना
बेसहैं: खरीदना
पिपहिरी: बांसुरी, सींटी के जैसा वाद्ययंत्र
रसही: रसीली
लड़िकन: बच्चे
बसाता: गोलगप्पे

विवाह गीत: मंडप छाजन (बियाहू: अवधी)

पनवा औ केलवा के मंड़वा छवैबे, बँसवा के खम्भ गड़ाय रे ।
अमवा की पतिया म बाँधि कलावा, बंदनवार सजाय रे ।।

चारो कोने कलस म नीर भरैबे, गंगा मैया से मंगाय रे ।
कलस के ऊपर चौदिस दियना, देबै सखी आजु बारि रे ।।

आओ कागा आओ नेवत देइ आओ, बिरना का मोरे बोलाय रे ।
पहला नेवत मैंने गनपति दीन्हों, दूजा नैहर भिजवाय रे ।।

तीसरा नेवत सखी टोला परोसी, संग दीन्हों सब रिस्तेदार रे ।
यही रे मांड़व बीच सबही बिठइबे, चंदन तिलक लगाय रे ।।

बर और कन्या बैठें चंदन चौकिया, सब कोई देहि आसीस रे ।
चाँद सुरज जैसी जोड़ी अमर हो, जीयहिं लाख बरीस रे ।।

**जिज्ञासा सिंह**

जोति जले तुलसी छैयाँ

जोति जले तुलसी छैयाँ 
ओ रामा जोत जले है।
जगमग करे है डगरिया
हो रामा गाँव जगे है ।।

पपिहा गावे दादुर गावे,
गीत सुनावे कोयलिया 
ओ रामा मोर नचे है ।।

एकादशी की छाई है तरई,
दूर दिखे है उँजेरिया 
हो रामा चाँद छुपे हैं ।।
 
आओ सखी आओ दियना जराओ,
कटि जाय रैन अँधेरिया
सुरज कहीं दूर बसे हैं ।।

एकहि जोति तिमिर घन काटे,
जैसे अंबर म चँदनिया
हो रामा छाई दिखे है ।।

जोति जले पीपल छैयाँ,
हो रामा जोति जले है ।।

**जिज्ञासा सिंह**

गंगा पूजन (लोकगीत)


सखी री मैं तो पूजन जाऊँ गंगा

हाथ में मेरे कलश विराजे
चुड़ियाँ छन छन बाँह में बाजे
माथे पे बिंदिया लाल चुनरिया 
गोटा लगा है सतरंगा
सखी....

सब कहें गंगा दूर बसी हैं
पर मोरे हिरदय आय लगी हैं
मातु पिता सम मुझको प्यारी 
करतीं मन मोरा चंगा
सखी....

आरती बंदन पूजन करती 
श्रद्धा भक्ति अर्पन करती 
सूरज की किरणों की छवि से 
बूंद बूंद है रंगा
सखी....

जीवन मृत्यु सभी कुछ जल से
गंगा के आशीष औ फल से
अपना जीवन स्वर्ग बनाऊँ 
अब तक था बेरंगा
सखी....

**जिज्ञासा सिंह**

आजु प्रणय की रात


आजु प्रणय की रात पिया तुम आ जाना

रंगमहल बीच झलर लगाऊँगी
झिलमिल तकिया मैं सेज सजाऊँगी
फूलन की बरसात, पिया तुम आ जाना

माँग मा मोरे सजी मोतियन लड़ियाँ 
छम छम बाजे पिया पैर पैजनियाँ 
मेहंदी रची मोरे हाथ, पिया तुम आ जाना

होठ सजे हैं जैसे खिल रहीं कलियाँ 
नैनों में छाई पिया, तोरी सुरतिया
बाट जोहे रनिवास, पिया तुम आ जाना

चाँद सितारे सब अँगना उतर आए
दीपक बाती पिया संग हिलमिल आए
जैसे हमारी मुलाकात, पिया तुम आ जाना

सात सुरों से सजा गीत सुनाऊँगी
पिया तेरी बाहों में झूल झूल जाऊँगी
साँसों में घुल जाए साँस, पिया तुम आ जाना

**जिज्ञासा सिंह**
चित्र:साभार गूगल 

रघुकुल वंशज कौन बने ? (भजन)

                    
कि रघुकुल वंशज कौन बने ?
अवधपुर सोचे मन अपने ।।
कि रघुकुल वंशज कौन बने ? 

राजा दशरथ जी का महल है सूना,
माताओं का आँचल सूना,
आस लगी बुझने ।
कि रघुकुल वंशज कौन बने ?

नृप नरेश सब न्योत बुलाओ,
ऋषिन बुलाओ, क्षेम कराओ
पूजा यज्ञ ठने ।
कि रघुकुल वंशज कौन बने ?

भर प्रसाद एक दिव्य कलश में,
ग्रहण करो राजा दशरथ ने,
पुत्र हुए कुल में ।
कि रघुकुल वंशज कौन बने ?

राम लक्ष्मण भरत शत्रुहन,
तीनों रानी जन्में लालन,
पूरे हुए सपने ।
कि रघुकुल वंशज कौन बने ?

**जिज्ञासा सिंह**

शारदे मुझको दो वरदान

शारदे मुझको दो वरदान ।।

कल तक मैं भूली भटकी थी,
तुमसे थी अंजान ।।

वीणा पाणिनि तेरी विद्या का,
जग करे बखान ।।

अम्बर से भी ऊँचा मन में,
है तेरा स्थान ।।

मानव ज्ञान तुम्हीं से पाते,
मिट जाता अज्ञान ।।

जिन्हें तुम्हारा मान न भावे,
वे मूरख नादान । 

ज्ञान, धैर्य माँ संयम देना,
मत देना अभिमान ।।

शारदे अब तो दो वरदान ।।

**जिज्ञासा सिंह** 

हे जगत जननी जगदम्बा ( लोकगीत )

हे जगत जननी जगदम्बा, हम द्वार तिहारे आए हैं ।

इस दुनिया के सारे प्राणी, जलचर, नभचर या थलचर हों,
तेरी कृपा के आगे नित, सब शीश झुकाने आए हैं ।।

चाँद-सितारे दिखते हैं पर, दिखती नहीं छवी तेरी माँ,
 कर कमलों से पंचतत्व की, मूर्ति बनाकर लाए हैं ।।

इस पृथ्वी ने और प्रकृति ने, है श्रृंगार किया हाथों से,
मांग सिंधु से अमृतधारा, चरण धुलाने आए हैं ।।

सूरज चंदा की ज्योति ले, दीपों में है जोति जगाई,
शंख और मंगल भजनों संग, उंजियारा ले आए हैं ।।

यही प्रार्थना हर प्राणी की, जग में व्याप्त विपत हर लो,
भटके हुए हृदय की खातिर, राह मांगने आए हैं ।।

हे जगत जननी जगदम्बा, हम द्वाए तिहारे आए हैं ।।

**जिज्ञासा सिंह**

हिंदी पढ़ाओ ( ग्रामीण महिलाओं को समर्पित)


बच्चों को हिन्दी पढ़ाना प्यारी सखियों
भाषा का ज्ञान कराना प्यारी सखियों 

हिंदी के अक्षर समझ नहीं आए 
तो रेखा बना के सिखाना प्यारी सखियों

हिन्दी की मात्रा समझ नहीं आए 
तो शब्दों को बोल सुनाना प्यारी सखियों

हिंदी का व्याकरण समझ नहीं आए
तो चित्र बनाके दिखाना प्यारी सखियों

हिंदी के वाक्य समझ नहीं आए
तो कविता, कहानी सुनाना प्यारी सखियों

हिंदी की गिनती समझ नहीं आए
तो रोज दिनाँक लिखाना प्यारी सखियों

बातचीत करना उन्हें नहीं भाए
तो ये है, अपनी भाषा बताना प्यारी सखियों

बच्चों को हिन्दी पढ़ाना प्यारी सखियों
  
    **जिज्ञासा सिंह**

गजानन आय बसो मेरे मन में


तुम कुंजन में, तुम कानन में
गजानन आय बसो मेरे मन में

एक साधना मन में साधी
प्रीत की डोरी तुमसे बांधी
रहते तुम नैनन में
गजानन आय बसो..

मेरा मन कोरा कागज़ जैसा
ढाल दो प्रभुवर चाहो जैसा
मैं तो पड़ी चरणन में
गजानन आय बसो..

धूल धूसरित काया है ये 
जग में व्यापी माया है ये
लिपटी जो कंठन में
गजानन आय बसो..

शीश नवाऊँ, पुष्प चढ़ाऊ
ज्ञान की ज्योति कहाँ से लाऊँ 
उलझी इन प्रश्नन में
गजानन आय बसो..

तुमसे है करबद्ध प्रार्थना
छोटी सी है आज कामना
आना इस आँगन में
गजानन आय बसो..

**जिज्ञासा सिंह**

नटखट कृष्ण कन्हैया प्यारा


जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ 
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
नटखट कृष्ण कन्हैया प्यारा
जसुदा माँ का राजदुलारा

जनम लिया वो कारागर में
काली आधी रात प्रहर में
सुंदर नैना वर्ण है कारा

घन बरसात भरी जमुना है
नंद के शीश चढ़े कान्हा है
चरण छुए जमुना जल हारा

गोकुल चले देवकी के सुत
रूप सलोना मोहनि मूरत
जसुदा की आँखों का तारा 

माखन चोर, मटकियाँ फोरी
रास रचावे राधा गोरी
गोकुल जन का प्राण पियारा

धेनु चराई, नाग नथाया
पर्वत एक उँगली पे उठाया
झूम उठा जन जीवन सारा

उस की लीला वो ही जानें
दिखे सदा बस मुरली ताने
मुरलीधर पे ये जग वारा

  **जिज्ञासा सिंह**

हरियाली तीज


चूनरी है हरी पहनी,माँग सेंदुर लगाया है,
मैंने आँखों में अपने आज, वो सुरमा लगाया है ।
जो साजन जी मेरे जाकर, बरेली से ले आए थे, 
औ मोती से जड़ा कंगन, वो जयपुर से मंगाए थे ।।

मेरे माथे सजा झूमर, पिया का जी लुभाता है,
कान में झूलता झाला, गीत यूँ गुनगुनाता है ।
कि प्राणों से पियारी तुम, सखी हो, सहचरी मेरी,
तुम्हारे सामने अर्पण, हमारे प्रेम की ढेरी ।।

वो ढेरी आत्मा के सूत्र को, तुमसे पिरोती है,
प्रेम में डूबकर सजनी, सजन में आज खोती है ।
तीज त्योहार रंगों से, सजाए गोरी का दामन,
सजेगी आज फिर सजनी,सजाएंगे उसे साजन ।।

बड़े अरमान से सासू ने, तोहफ़ा ये दिया मुझको, 
कहा आशीष देकर तुम,बड़ी प्यारी हो हम सबको ।
सदा गौरा के जैसे प्रेम, तुमको दें महाशंकर,
भरा आँचल रहे तेरा, ख़ुशी झूमे तेरे दर पर।। 

**जिज्ञासा सिंह**

सावन के हिंडोले (लोकगीत)


मन मोरा झूला झूले है हिंडोले रे
हिंडोले में हिंडोले में
मन मोरा झूला झूले है हिंडोले रे

अंखियाँ जो मूंदू,सपना मैं देखूँ 
रेशम लगीं डोरी हिंडोले रे
मन मोरा झूला...

माथे पे बिंदिया, कानों में कुंडल
नाक में नथिया डोले रे
मन मोरा झूला....

हरी हरी चुनरी,पहन के निकली
पिया मोरे कानों में बोले रे
मन मोरा झूला...

हर बगिया में देखो झूले पड़े हैं 
मार पेंग नभ छूलें रे
मन मोरा झूला...

सखियाँ सहेली सब दूर खड़ी 
और पिया मोरे संग संग झूले रे

मन मोरा झूला झूले है हिंडोले रे

**जिज्ञासा सिंह** 

चुनरिया धानी लैहौं (कजरी गीत )

आयो सावन मास चुनरिया धानी लैहौं

हरे हरे अम्बर,हरी हरी धरती 
हरे हरे बूँद बदरिया झरती 
कजरी गाय सुनैहौं, चुनरिया धानी...

हरी हरी मेहंदी पीस रचाई 
हरी हरी चुड़ियों से भरी है कलाई
बेसर नाक पहिरिहौं,चुनरिया धानी...

अठरा बरस की मैं  ब्याह के आई
मैं बनी राधा पिया किशन कन्हाई
झूम के रास रचैहौं,चुनरिया धानी...
 
निमिया की डारि पे पड़ गए झूले
रेशम डोरी लागी रंग सजीले  
मारि पेंग नभ छुइहौं,चुनरिया धानी... 

कोई सखी काशी कोई सखी मथुरा
सुधि मोहें आवे लागे न जियरा
पाती भेजु बुलवइहौं,चुनरिया धानी...

अम्मा औ बाबा की याद सतावे
रहि रहि करेजवा में पीर मचावे
बीरन आजु बुलैहौं,चुनरिया धानी...

आयो सावन मास चुनरिया धानी लैहौं...

 **जिज्ञासा सिंह**

बौने पौधे का दर्द (बोनसाई)

मैने गमले में बगिया लगाई
एक नाम दिया बोनसाई

पहले पेड़ से टहनी को काटा,
कई टुकड़ों में फिर उसको बांटा
गाड़ मिट्टी में कर दी सिंचाई
और नाम दिया बोनसाई

दिन बीते, महीनों बीते
उस दिन हम प्रकृति से जीते
जब टहनी में कोपल आई
और नाम दिया बोनसाई

छोटा गमला लिया थोड़ी मिट्टी भी ली
थोड़ा मौरंग लिया थोड़ी गिट्टी भी ली
फिर गमले में कलम सजाई
और नाम दिया बोनसाई

पत्ती आने लगी, शाखा भरने लगी 
कोने कोने में बगिया सजने लगी 
लेने आने लगे सौदाई 
और नाम दिया बोनसाई 

कुछ सौ में बिके कुछ हज़ार में 
वट पीपल भी बेचा बाज़ार में 
ख़ूब होने लगी फिर कमाई 
और नाम दिया बोनसाई

वट सावित्री का दिन आया 
बौने पौधे को ख़ूब सजाया 
की पूजा औ फेरी लगाई 
और नाम दिया बोनसाई 

मैंने माँगी दुआ विटप रोने लगा 
और रो करके मुझसे यूँ  कहने लगा 
क्यों की तुमने मेरी छँटाई 
और नाम दिया बोनसाई 

पहले काटा मुझे फिर बौना किया 
मुझे रहने को छोटा सा कोना दिया 
तुम्हें मुझपे तरस न आई  
और नाम दिया बोनसाई 

कितने निष्ठुर हो तुम नर नारी 
हो चलाते कुल्हाड़ी कटारी
अब साँसों की देते दुहाई 
और नाम दिया बोनसाई 

 **जिज्ञासा सिंह**

बच्चे और वृक्ष -बचपन के साथी ( लोकगीत )

  


तर्ज.. वंशी तो बाजी मेरे रंग महल में..
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सपने में आज सखी तरुवर देखा
तरुवर के नीचे खेलें बालक देखा

तरुवर के नीचे छहाएँ, सखी नन्हें बालक
तरुवर से हँस बतियाएँ, सखी नन्हें बालक
तरुवर की डाल चढ़ जाएँ, सखी नन्हें बालक, अँखियन  देखा
सपने में आज.......

तरुवर से फूल पत्ती पाएँ, सखी नन्हें बालक
तरुवर से फल सब्जी खाएँ, सखी नन्हें बालक
तरुवर पे लटके झूला झूले सखी नन्हें बालक,अँखियन देखा 
सपने में आज.......

तरुवर की लकड़ी की गाड़ी दौड़ाएँ बालक
तरुवर की लकड़ी की नाव चलाएँ बालक
तरुवर की धनुष पे तान चढ़ाएँ, बालक, अँखियन देखा
सपने में आज.......

तरुवर की पाटी पे क ख और ग घ लिखें
तरुवर की कुर्सी पे बैठ किताबें पढ़ें
तरुवर की वीणा पे गान मधुर गावें, अँखियन देखा
सपने में आज सखी.......

ऐसे में प्यारी सखी,आओ न हाथ मिलाएँ  
सब मिल के पेड़ लगाएँ, हरियाली हम फैलाएँ,
अपने बच्चों के लिए धरती को खूब सजाएँ, खींचें एक रेखा
सपने में आज सखी.......

मेरे स्वपन मेरी संखियों को भाने लगे
हम सब मिल जुल के पेड़ लगाने लगे
बच्चों के लिए हरियाली फैलाने लगे,जंगल मुस्काने लगे
धरती माँ मुसकायीं,सज धज हर्शायीं जैसे सुरेखा
सपने में आज सखी......

**जिज्ञासा सिंह**

देवी गीत

मेरे मैया की ऊँची अंटारी,मैं तो धीरे धीरे चढ़कर आई
सास ससुर को साथ में लाई,अपने माता पिता भी लाई
मैं तो....

अपनी मैया के लिए चुनरी भी लाई,चुनरी मैं लाई
 मैं तो भोजन भी लाई,मैं तो दीप जलाने आई, 
मैं तो धीरे धीरे....

भरी रहें मेरे देश की नदियाँ, देश की नदियाँ,
औ ताल तलरियाँ  
मैं तो बरसात मांगन आई, मैं तो धीरे धीरे ....

फूलों फलों से लदीं हों बगियाँ,
 बागों में उड़ती हों, तितली औ चिड़ियाँ  
मैं तो हरियाली मांगन आई,मैं तो धीरे धीरे ....

देश की मेरे भरी हों भंडारे, चलते हो लंगर 
और खाएं कतारें,
 मैं तो अन धन मांगन आई मैं तो धीरे धोरे.......

मेरे देश का आँगन भरा हो, सद्भाव शिक्षा का दीप जला हो
मैं तो घर बार मांगन आई, मैं तो धीरे धीरे...

मेरे मैया की ऊँची अटारी, मैं तो धीरे धीरे चढ़ कर आई ।।

**जिज्ञासा सिंह**

ग्राम पंचायत चुनाव (स्त्री विमर्श -लोकगीत)


तुमको वोट न देबै, चाहे हम नोटा पे डाल आई रे,


पिछली बार हम तुमको जितायों 

कालोनी, कैट्टेल कुछू नाहीं पायों 

गलियन में भरा मोरे कचरा, प्रधान जी कीचड़ में फँस गई रे ।

 तुमको............।।


किसी के दुआरे पे सोलर लगा है 

किसी के दुआरे खडंजा गड़ा है 

हमरे दुआरे भरा गड्ढा, प्रधान जी सड़कें भी धँस गई रे । 

तुमको...........।।


अपना तुम रहो बाबू महला दुमहला 

हमरी झोपड़िया में पानी चुए ला 

भीग जाय मोरी चदरिया, मैं रात दिन पानी उलच रही रे ।

तुमको..........।।


तुम से कहा राशन कार्ड बनवा दो 

मनरेगा में काम दिला दो 

सास,ससुर दोनो बूढ़े, प्रधान जी पेंशन भी रुक गई रे  ।

तुमको............।।


पड़ा चुनाव तब तुमका मैं देखी 

नाहीं तो तुम हो जाओ विदेसी 

ढूँढ़न कहाँ तुम्हें जाऊँ, प्रधान जी मैं तो हूँ कम पढ़ी रे ।

तुमको............।।


अबकी बार हम उसको जितावें 

गांव की उन्नति जो कर के दिखावे

हर दम सुने मोरी बात, अभी तक धोखे में पड़ी रही रे ।

तुमको.............।।


गाँव का रूप बदलना होगा

स्वच्छ मोहल्ला करना होगा

तभी मिलेगा मेरा वोट,वरन मैं तो मैके को जाय रही रे

तुमको...…......।।


**जिज्ञासा सिंह**

पिचकारी और सारी



भर भर मारी पिचकारी
सजन मोरी भीज गई सारी

द्वारे से आए ससुर मुस्काएं
सासू हंसे दै दै तारी, सजन मोरी.....

ई सारी मोरे मैके से आई 
अम्मा ने भेजि हमारी, सजन मोरी..... 

मूंगा रेशम की बनी मोरी सारी
जयपुरी गोटे की किनारी, सजन मोरी.....

भईया भतीजा मोरा दुइनो दरोगा
लै लेहैं खबर तुम्हारी, सजन मोरी.....

काहे गोरी रूठी काहे खिसियाओ
तुमको दिलैहैं नई सारी, सजन मोरी.....

भईया भतीजा से जाय न कहियो
इतनी है, अरज हमारी, सजन मोरी.....

भर भर मारी पिचकारी, सजन मोरी.....

**जिज्ञासा सिंह**

रंगरंगीला होली गीत




होली रंगन का त्योहार बलम जी खेलन जइबे आज ।


सात मेर के रंग मंगइबे, बीच आँगन मा कुंड खोदैबे 

रंग देब घुलवाय, बलम जी खेलन जइबे आज 

होली रंगन ...


सखियाँ सहेली सबै बोलैबे, बीच आँगन म तुम्हें घेरैबे 

तुमका देब गिराय, बलम जी खेलन जइबे आज

होली रंगन ...


चाहे पिया भागो,चाहे लुकाओ, चाहे जेतना तुम शोर मचाओ 

रंग मा देब डुबाय, बलम जी खेलन जइबे आज

होली रंगन...


 भाँग पीस शर्बत बनवैबे, लौंग इलायची सौंफ मिलैबे 

तुमका देब पिलाय, बलम जी खेलन जइबे आज

होली रंगन ...


गुझिया गुलगुला रची के बनैबे, सखा सहेलिन ख़ूब खिलैबे 

गठरी देब बँधाय, बलम जी खेलन जइबे आज 

होली रंगन...


ढोल मजीरा ख़ूब बजैबे, नाच गाय तुमका दिखलैबे 

फगुआ देब सुनाय, बलम जी खेलन जइबे आज

होली रंगन...


**जिज्ञासा सिंह**

फगुनिया ओढ़नी




देखो सखी ओढ़नी मंगाई फागुन में

धानी रंग ओढ़नी बसंती रंग ओढ़नी
 लाल रंग ओढ़नी मंगाई फागुन में 

फूल छाप ओढ़नी चिरैया छाप ओढ़नी
हिरनी छाप ओढ़नी मंगाई फागुन में

ओढ़नी ओढ़ मैं बैठी झरोखे
आए गए बालम निहारें फागुन में

लाल रंग देखें चिरैया छाप देखें
देख देख हमका सतावें फागुन में

बार बार हमसे सजन यही पूछें
लाया कौन ओढ़नी बताओ फागुन में

संखियां सहेली संग गई मैं बजरिया
मिल गए यार पुराने फागुन में

हँस बतियाए, मिठैया खिलाए
ओढ़नी दिलाए गुलाबी फागुन में

इतनी बचन सुन बलमा जी रूठे 
बैठ गए हमसे रिसाय फागुन में 

ओढ़ के ओढ़नी मैं बैठी सेजरिया 
दीना बलम को चिढ़ाय फागुन में 

बड़ी रे जतन से सजन को मनाया 
लीना हिया से लगाय फागुन में 

देखो सखी ओढ़नी मंगाई फागुन में 

**जिज्ञासा सिंह**

होली की हार्दिक शुभकामनाएं
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गौरैया ( गौरैया दिवस-लोकगीत )


मेरे घर आना, तू प्यारी गौरैया ।

शोर मचाना, तू प्यारी गौरैया ।।


तोता को लाना, मैना को लाना 

बुलबुल को लाना, तू प्यारी गौरैया ।।

मेरे घर...

पेड़ लगाऊँगी, पकड़िया लगाऊँगी 

घोसला बनाना, तू प्यारी गौरैया ।।

मेरे घर...

दाना भी दूँगी, तुम्हें पानी भी दूँगी 

ख़ूब नहाना, तू प्यारी गौरैया  ।।

मेरे घर...

ख़ूब बड़ा सा है, मोरा अँगनवाँ 

फुदक फुदक जाना, तू प्यारी गौरैया ।।

मेरे घर...

मोरे अंगनवाँ में झूला पड़ा है 

झूलझूल जाना, तू प्यारी गौरैया ।।

मेरे घर...

शाम सवेरे मैं, तुमको निहारूँगी 

हँस बतियाना, तू प्यारी गौरैया ।।

मेरे घर...

रोज़ सुबह तुम, मुझको जगाना  

गाके मधुर गाना, तू प्यारी गौरैया ।।

मेरे घर...

पर्यावरण की तुम हो सहेली

रूठ नहीं जाना, तू प्यारी गौरैया ।।

मेरे घर...


**जिज्ञासा सिंह**

भजन (शिवरात्रि)

मोहे भोले की चढ़ गई भाँग, गौरा पूजन गई

आँखों में चढ़ गई, माथे पे चढ़ गई
वो तो चढ़ गई मोरे कपाल, गौरा पूजन गई ।

अंदर से झूमीं, मैं बाहर से झूमीं 
मोहे झूमन लगा ब्रम्हांड, गौरा पूजन गई ।

झूम, झूम, गिर, गिर हिमालय को पहुँची
मैं तो पहुंच गई कैलाश, गौरा पूजन गई ।

ब्रम्हा जी ठाढ़े, वहाँ विष्णु जी ठाढे,
मेरे सम्मुख खड़े भोलेनाथ, गौरा पूजन गई ।।

उनको निहारूं, मैं खुद को निहारूं
मेरे नैना खुले अविराम, गौरा पूजन गई ।।

क्या मैं चढ़ाऊं, क्या माँगन मैं मांगू
मैं तो चरणों में गिर गई जाय, गौरा पूजन गई ।।

मन मेरा पुलकित है, तन मेरा हर्षित 
मेरे हिरदय में बसे महाकाल, गौरा पूजन गई ।।

मोहे भोले की चढ़ गई भाँग, गौरा पूजन गई ।।
      
  **जिज्ञासा सिंह**

महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं
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एक गृहणी की प्रतिज्ञा (महिला दिवस )

घर की मैं महारानी सुनो री सखी
अपने मन की रानी सुनो री सखी

पौधे लगाऊंगी फूल खिलाऊँगी
सब्जी उगाऊँगी फल भी उगाऊँगी
गमले में करूं बागबानी सुनो री सखी

आस पड़ोस को साफ कराऊंगी
सड़क किनारे मैं पेड़ लगवाऊंगी
करूंगी खुद निगरानी सुनो री सखी

योग करूंगी व्यायाम करूंगी
सेहत का सबके ध्यान रखूंगी
बीमारी घर से भगानी सुनो री सखी

कामवाली का अपने ध्यान रखूंगी
उसकी जरूरत पूरी करूंगी
काम हमारे वही आनी सुनो री सखी

बच्चों को अपना गौरव बनाऊंगी
शिक्षा दिलाऊँ, संस्कार सिखाऊँगी
अच्छी माँ जाऊं पहचानी सुनो री सखी

अपने लिए मैं वक्त निकालूंगी
मन के अधूरे सारे काम करूंगी
खुद को न अब तक जानी सुनो री सखी

घर को अपने व्यवस्थित रखूंगी
फिजूलखर्ची न बिल्कुल करूंगी
अपने ही मन में ठानी सुनो री सखी

सारी प्रतिज्ञा मैं पूरी करूंगी
शौक श्रृंगार बन ठन के रहूंगी
अब न करूंगी आनाकानी सुनो री सखी

अपने मन की रानी सुनो री सखी
घर की हूं महारानी सुनो री सखी....

        **जिज्ञासा सिंह**