अमवा की पतिया म बाँधि कलावा, बंदनवार सजाय रे ।।
चारो कोने कलस म नीर भरैबे, गंगा मैया से मंगाय रे ।
कलस के ऊपर चौदिस दियना, देबै सखी आजु बारि रे ।।
आओ कागा आओ नेवत देइ आओ, बिरना का मोरे बोलाय रे ।
पहला नेवत मैंने गनपति दीन्हों, दूजा नैहर भिजवाय रे ।।
तीसरा नेवत सखी टोला परोसी, संग दीन्हों सब रिस्तेदार रे ।
यही रे मांड़व बीच सबही बिठइबे, चंदन तिलक लगाय रे ।।
बर और कन्या बैठें चंदन चौकिया, सब कोई देहि आसीस रे ।
चाँद सुरज जैसी जोड़ी अमर हो, जीयहिं लाख बरीस रे ।।
**जिज्ञासा सिंह**
बहुत सुन्दर गीत !
जवाब देंहटाएंइस गीत पर आपकी उपस्थिति और प्रशंसा, दोनों ने इसे सार्थक बना दिया । आपको मेरा सादर नमन ।
हटाएंसुंदर सरस गीत।
जवाब देंहटाएंकुसुम जी, आज मैं आप से इस ब्लॉग पर आने के लिए निवेदन करने वाली थी क्योंकि आप हर विधा की विदुषी हैं,आपकी प्रतिक्रिया मेरे इस तरह के लोकगीतों के सृजन का मार्ग प्रशस्त करेगी ।आपको मेरा सादर नमन ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गीत।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय सर 🙏🙏
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(२०-११-२०२१) को
'देव दिवाली'(चर्चा अंक-४२५४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
अनीता जी,
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार । चर्चा मंच में गीत का चयन होना मेरे लिए सौभाग्य की बात है, मेरी हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई ।
बहुत ही सुन्दर गीत
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार अभिलाषा जी, आपकी प्रशंसा ने गीत को सार्थक कर दिया ।
हटाएंबहुत ही सुंदर गीत!
जवाब देंहटाएंमैम हमारे यहाँ ऐसे गीत आज भी गाएं जातें हैं हमारी और बहुत ही अच्छा लगता है!
हम लोग भी बचपन में बहुत गाते थे जब किसी के यहाँ को शादी या कोई और शुभ काम होने वाला होता था उसके सात,पांच दिन पहले ही गीत गाएं जाने लगते थे और हम लोग भी गाने जातें थे पर बे सुरी राग से इस लिए दादी और बाकी लोग हम बच्चों को गाने ही नहीं देते थे और बहुत गुस्सा आता था हमें 😀😀
लोकगीत सुनकर कुछ अलग सा ही एहसास होता है!
प्रिय मनीषा हमारे यहां भी अब इसे इक्का दुक्का लोग गाते हैं, परंतु मैं बड़ी शौकीन हूं लोकसंगीत की । और गाती भी हूं । परंतु सोहर और बियाहू तो नहीं आता था, पर दादी के साथ रात में लेटने के समय एक बड़ा मजाकिया सोहर सीखा था, जो लोगों को सुनने में बड़ा मजा देता था । मेरे घर में गीत संगीत का माहौल था जिससे मेरे अंदर लोकगीत बसा हुआ है, इधर तो सोहर और बियाहू खूब लिखे हैं मैने, आती रहना और दादी को सुनाना, इन गीतों में एक किसी भी प्रसंग की कहानी छुपी होती है, को जीवन में रस और रंग भरती है, वैसे तुम्हारा गांव कहां पड़ता है ? ये अपने अवध क्षेत्र में ज्यादा गया जाता है ।
जवाब देंहटाएं... हम लोग इन्हें सहेजने और विस्तार देने का काम करें तो अच्छा रहेगा ।भोजपुरी को बहुत बढ़ावा मिला है परंतु अवधी गीतों को नहीं मिल पा रहा है ।
तुम्हें मेरा सस्नेह आशीर्वाद💐💐
हाँ मैं जरूर सुनाऊंगी दादी को उन्हें बहुत पसंद आयेगा!मैम मेरा गाँव गोण्डा जिले करनैलगंज में पड़ता है!
हटाएंतुम तो मेरे मायके की हो, मेरा गांव कर्नलगंज के पास ही है 😀😀
जवाब देंहटाएंकिस गाँव में?
हटाएंमैं पूरे एरिया से परिचित हूं, मैसेंजर पे हो तो मैसेज करो ।
जवाब देंहटाएंया मेरी प्रोफाइल से ईमेल पे कॉन्टैक्ट कर सकती हो ।
जवाब देंहटाएंप्रिय जिज्ञासा जी, विवाह मंडप के गीत नवयुगलकेभावीजीवन के लिए शुभता की भावना से भरे होते हैं। बहुत बढ़िया सरस अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक शुभकामनाएं।🙏❤️🌷🌷🌷
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार सखी 😀💐
जवाब देंहटाएंवाह ...
जवाब देंहटाएंइन गीतों का आनंद अलग ही है ...
बहुत बहुत आभार आपका ।आपकी टिप्पणियों ने मेरे इस गीतों के ब्लॉग को सार्थक बना दिया ।आपको नमन और वंदन 🙏💐
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