बिंदिया जो सोहे लिलार
नयन कजरार
देहरी करे उजियार
सखी देखो सुन्नर नार।
साँझ पहर आजु
तिमिर भगावे
करि आवाहन
दैव बोलावे
थाल सजावे दीपक बाती
राह अगोरे द्वार
सखी देखो सुन्नर नार।
दूर अकास
नखत करें झिलमिल
धरनी गावत
झूमत तिल-तिल
बाँह गहे हँसे रैन अँधेरी
होत जात तार-तार
सखी देखो सुन्नर नार।
है आलोकित
कण-कण ये जग
सृष्टि समूह
दिखे सब जगमग
दीप उड़े दुर्लभ पंखों संग
नभ अम्बर के पार
सखी देखो सुन्नर नार।
जिज्ञासा सिंह