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कतकी नहान (पूर्णमासी मेला)


मेला लगा है बड़ी धूम, सुनो री सखी ।

इक्का न चलबै, तांगा न चलबै ।
पैदल चलबै झूम झूम, सुनो री सखी ॥

आगे न चलबै पीछे न चलबै ।
चलबै बनाई एक झुंड, सुनो री सखी ॥

धोती भी लिहे चलौ, चुनरी भी लिहे चलौ ।
खूब नहैबे आज कुंड, सुनो री सखी ॥

सतुआ पिसान सखि, कुछ नाहीं बंधबै ।
खाबै जलेबी दही ढूँढ, सुनो री सखी ॥

सर्कस देखबै, झूलव झुलबै ।
गोदना गोदइबै सतरंग, सुनो री सखी ॥

**जिज्ञासा सिंह**