अरे रामा चूड़ी है रंगबिरंगी
चुनरिया धानी रे हारी ।
मेरे माथे सजी है बिंदिया,
नथनिया न्यारी रे हारी ॥
मैं पहन के निकली अँगनवाँ
हैं द्वारे से आए सजनवाँ
मैं देख उन्हें शरमाई रामा
अरे रामा पुरवा चले बयार
पिया पे जाऊँ वारी रे हारी ॥
अरे रामा चूड़ी है रंगबिरंगी
चुनरिया धानी रे हारी ॥
मोरी चूड़ी खनखन बोले
मोरा जियरा रहि रहि डोले
मोरी निमियाँ पे बोले कोयलिया रामा
अरे रामा पपिहा गावे मल्हार
बिहंसें सखि प्यारी रे हारी ॥
अरे रामा चूड़ी है रंगबिरंगी
चुनरिया धानी रे हारी ॥
अब सावन झूले पड़ेंगे
हम सखियन के संग झूलेंगे
हम मारेंगे पेंग अकासी रामा
अरे रामा जाएँगे नभ के पार
लचक जाए डारी रे हारी ॥
अरे रामा चूड़ी है रंगबिरंगी
चुनरिया धानी रे हारी ॥
**जिज्ञासा सिंह**