ओ सखी मोरी अँखियाँ
भरि भरि जायँ ।
बारे पिया की याद में,
मोरी अँखियाँ भरि भरि जायँ ॥
पिया सलोने गए नौकरिया
जब से गए नाहीं दीनी खबरिया
रात दिना मैं राह अगोरूँ
चैन लुटा है जाय ॥
ओ सखी…
प्रीति बिना मोरी सूनी नगरिया
दूर दूर नाहीं दीखें सँवरिया,
कासे कहूँ अब का की सुनूँ मैं
मति मोरी भरमाय ॥
ओ सखी…
बाली उमर की प्रीति अनोखी
मन चंचलता अँखियन सोखी
कौन कहे वो कब आवेंगे
क्षन नाहीं बीते बिताय ॥
ओ सखी...
झूला जो झूलूँ नभ तक जाए
साँझ सुनहरी है मुस्काए
खग आए सब अपने द्वारे
प्रियतम नाहीं आयँ ॥
ओ सखी…
**जिज्ञासा सिंह**
'झूला जो झूलूँ, नभ तक जाए'
जवाब देंहटाएंवाह जिज्ञासा ! तुम्हारे इस गीत से कविवर बिहारी की विरहिणी नायिका याद आ गयी जो कि अपने पिया के वियोग में इतनी दुबली हो गयी है कि सांस लेते ही वह घड़ी के पेंडुलम जैसी झूलने लगती है.
आपकी इतनी सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका आभार आदरणीय सर 👏💐
हटाएंप्रियतम की याद में विरह गीत .….. भावपूर्ण लिखा है ।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार आदरणीय दीदी 👏🌹❤️
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(12-6-22) को "सफर चल रहा है अनजाना" (चर्चा अंक-4459) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
विरहन के विरह गीत को बाखूबी शब्द दे दिए ...
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच में इस ल्कगीत की चर्चा ।बहुत बहुत आभार प्रिय कामिनी जी ।सादर नमन और सादर शुभाकामनाएं 🌹❤️
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरती से एक विरहिणी को पिरो दिया आपने इन शब्दों में जिज्ञासा जी...गजब...बहुत ही सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका।
हटाएंलोकगीतों की मिठास और टीस !
जवाब देंहटाएंदोनों छलक कर कहें जी की पीर ।
बहुत बहुत आभार नूपुर जी ।
जवाब देंहटाएंवाह!बहुत ही सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत-बहुत आभार आपका अनीता जी ।
हटाएंबहुत मीठा!
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार आदरणीय ।
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