आयो सावन मास चुनरिया धानी लैहौं
हरे हरे अम्बर,हरी हरी धरती
हरे हरे बूँद बदरिया झरती
कजरी गाय सुनैहौं, चुनरिया धानी...
हरी हरी मेहंदी पीस रचाई
हरी हरी चुड़ियों से भरी है कलाई
बेसर नाक पहिरिहौं,चुनरिया धानी...
अठरा बरस की मैं ब्याह के आई
मैं बनी राधा पिया किशन कन्हाई
झूम के रास रचैहौं,चुनरिया धानी...
निमिया की डारि पे पड़ गए झूले
रेशम डोरी लागी रंग सजीले
मारि पेंग नभ छुइहौं,चुनरिया धानी...
कोई सखी काशी कोई सखी मथुरा
सुधि मोहें आवे लागे न जियरा
पाती भेजु बुलवइहौं,चुनरिया धानी...
अम्मा औ बाबा की याद सतावे
रहि रहि करेजवा में पीर मचावे
बीरन आजु बुलैहौं,चुनरिया धानी...
आयो सावन मास चुनरिया धानी लैहौं...
**जिज्ञासा सिंह**