शिव जी का भजन


शिव आए मेरे द्वारे मस्तक पर गंगा धारें                

मैं मृग छाला ले आई 

और प्रभु का आसन बिछाई       

चरण गंगा के जल से पखारे,

मस्तक पर गंगा धारे 


शीश चंदा बड़ा है निराला,

गले सोहे है सर्पन की माला 

हाथों से डमरू बजा रे

मस्तक पर गंगा धारे   


लगा धरती पे अद्भुत मेला

प्रभु वंदन की सुंदर बेला  

माह सावन का धूम मचा रे

मस्तक पर गंगा धारे  

           

ठाढे हैं सकल नर नारी

त्रिपुरारी रहे निहारी                  

बर माँगे है सीस नवा रे

मस्तक पर गंगा धारे 

**जिज्ञासा सिंह**       

21 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (7 -8-22} को "भारत"( चर्चा अंक 4514) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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    कामिनी सिन्हा

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    1. चर्चा मंच में इस भजन का चयन बहुत ही हर्ष का विषय है । बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी । मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।

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  2. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 07 अगस्त 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. "पांच लिंकों का आनंद" में इस भजन का चयन बहुत ही हर्ष का विषय है । बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय दीदी । मेरी हार्दिक शुभकामनाएं

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  4. हर-हर महादेव..
    अति सुंदर भजन जिज्ञासा जी।
    सस्नेह।

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  5. हर-हर महादेव। सुंदर शिव भजन के लिए आपको बधाई।

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  6. जय शिव शंकर , बहुत सुंदर महिमा गान आदरणीय ।

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  7. बहुत सुंदर जिज्ञासा जी, शिवगीत का एक एक शब्‍द मन को छू गया...अद्भुत

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  8. मन के आँगन में शिव का अवतरण -कितनी मनमोहक घटना !बधाई हो ,

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  9. बहुत ही सुन्दर भजन, मन मगन हो गया...जय भोले 🙏

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