समधी के बारे लला (लोकगीत)


भोजन करो समधी के बारे लला ।
बारे लला, गोभवारे लला ॥
भोजन करौ समधी के बारे लला ॥

छप्पन बिंजन रुचि रुचि बनायों
रसही जलेबी इमरती रचायों
खाओ तो खाओ नाहीं, समधी बोलाई
तोरी अम्मा बोलाओं बारे लला । 
भोजन करौ समधी के बारे लला ॥

जयपुर कढ़ैया के चदरा मंगायों
झारि झारि तकिया सजाय बिछायों
लेटो तो लेटो नाहीं, बहिना बोलाई
तनी एसी चलावें बारे लला ।
भोजन करौ समधी के बारे लला ॥

यहि रे नगरिया दूल्हे गरमी बहुत है
गली गली ठंडा दोकान सजत है
पियो तो हम तोहे बोतल मंगाइ देइ
पैप्सी मंगाओं बारे लला ।
भोजन करौ समधी के बारे लला ॥

हमरे देस बाजारन म आयो 
सादी अउर बियाहन म आयो
पैसा वसुलिहौं, ब्याज लगइहौं
जौन खर्च कराएव बारे लला ।
भोजन करौ समधी के बारे लला ॥

**जिज्ञासा सिंह**
शब्द: अर्थ
बारे लला: छोटे बच्चे 
गोभवार: गर्भ के बाल वाले बच्चे
दोकान: दुकान 
बिंजन: व्यंजन, भोजन 
वसुलिहौं: वसूली करना

15 टिप्‍पणियां:

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  2. गीत मज़ेदार है लेकिन इसमें थोड़ी गालियाँ होतीं तो यह ज़्यादा चटपटा हो जाता.

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  3. त्वरित टिप्पणी के लिए आपका आभार !
    जानती तो सब हूँ, अगर आप कहेंगे तो अगले गीत में आपको सुनने (पढ़ने😀)को मिलेंगी !
    सोशल मीडिया में कोई अन्यथा न ले !
    इसलिए ज़्यादा नहीं डाली
    आपको मेरा सादर अभिवादन😀👏🏻

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  4. बहुत बढ़िया लोकगीत । हर विधा में माहिर हैं ।

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  5. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(४-०६-२०२२ ) को
    'आइस पाइस'(चर्चा अंक- ४४५१)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  6. बहुत बहुत आभार आपका प्रिय अनीता जी ।

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  7. वाह! बहुत सुंदर, लेकिन गोपेश जी की भावनाओं को जगह मिलनी चाहिए!

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय। आप सबकी भावनाओं का ख्याल जरूर रखा जाएगा ।

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  8. बहुत सुंदर लोकगीत। अब तो लोकगीत इतिहास होते जा रहे हैं ।

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  9. जी, सही कह रहे हैं आप । बहुत बहुत आभार आपका ।

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  10. वाह बेहतरीन लोकगीत जिज्ञासा जी।

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